स्वतंत्र भारत @75 - सत्यनिष्ठा से
आत्मनिर्भरता
देश की आजादी को 75 वर्ष हो रहे हैं और हम आजादी के अमृत
महोत्सव के अवसर पर 75 वर्ष के इतिहास का पुनरावलोकन कर रहें हैं। इसमें सदियों के
गुलाम भारत के आजादी के 75 वर्षों बाद सत्यनिष्ठा से आत्मनिर्भर बनकर खड़े होने की
कथा है।
स्वतंत्रोत्तर भारत ने 75
वर्षों में भारत के भौगोलिक एकीकरण की क्रांति(गोवा, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर
आदि), हरित क्रांति, श्वेत क्रांति,
नीली क्रांति, काली क्रांति, औद्योगिक क्रांति, देश में एक पार्टी के राज से बहुपार्टी राज तक की
क्रांति(आपात काल), परमाणु क्रांति, सूचना प्राद्योगिकी क्रांति, दुनिया की
फार्मेसी बनने की क्रांति, अंतरिक्ष में मंगलयान की क्रांति, हॉकी से भाला फेक तक
की खेल क्रांति, 1962 की हार से सीमा पर डटकर सर्जिकल स्टाईक करने तक की क्रांति,
मदर इंडिया से रोबोट 2.0 तक की फिल्मी क्रांति, निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की क्रांति, प्रतिभा पलायन से प्रतिभा को प्रोत्साहन देने हेतु स्टार्ट-अप-इंडिया,
मेक-इन-इडिया, स्किल इंडिया, वोकल फार लोकल, डिजिटल इंडिया जैसे पहल आदि ने भारत
को सत्यनिष्ठा से आत्मनिर्भर बनकर खड़ा कर दिया।
एक समय था जब भारत के
प्रतिनिधि विश्वभर में अंग्रेजी की वैशाखी के सहारे बोलते थे, मगर अब भारत के प्रधानमंत्री सत्यनिष्ठा से आत्मनिर्भर होकर विश्वभर में विश्व
की तीसरी बड़ी भाषा हिंदी में अपना भाषण देते हैं।
आज का भारत भूकंप,
बाढ़, आकाल, आतंकवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, बेरोजगारी आदि समस्याओं से न
केवल लड़ रहा है, बल्कि कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी से भी आत्मनिर्भता के साथ
निरंतर डटकर लड़ रहा है। ऐसे में इकबाल की चंद पंक्तियां सहज ही याद आ जाती है-
सारे जहाँ से
अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं
इसकी ये गुलसिताँ हमारा।
X X X
X
कुछ बात है कि
हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है
दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।
👉सुनील कुमार साव
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